“ज़िन्दगी”
कितनी मुश्किलें लिए चलती है ये ज़िन्दगी...
न जाने कितने रिश्ते नाते लिए फिरती है ये ज़िन्दगी
कल से हाँथ मिलाने, अपने ही कल से जुदा हो जाती है ये ज़िन्दगी,
टूटती भी है बिखरती हे फिर तनकर खड़ी हो जाती है ये ज़िन्दगी,
पंख नही है इसके.
ख्वाबों खयालो से आसमान छु आती है ज़िन्दगी
ना जाने ये कैसा इश्क है, मौत को गले लगाती है ये ज़िन्दगी,
माँ-बाप के ठन्डे साए सभी पली है ये,
ना जाने क्यों बचपन की मासूमियत भूल जाती है ये ज़िन्दगी
चिलचिलाती धुप में नंगे पैर छालो को
पाले, कदम बढाती हे ज़िन्दगी,
दुनिया की रंगीनियों में, खुद का रंग भूल जाती
है ज़िन्दगी,
पेट की जद्दोजेहद में कही खो जाती हे ज़िन्दगी,
ये अजीब सा इत्तफाक हे,
सपने देखती हे नींदों में, पुरे करने को जग जाती हे ज़िन्दगी,
जब जिंदा थे तब रकीब बनती थी,
फिर क्यों कफ़न में लिपटे पर आंसू बहती हे ये ज़िन्दगी,
मिटटी में मिल जाना तकदीर है इसकी फिर क्यों महलो के ख्वाब सजाती है ज़िन्दगी||
-अनूप धीमान
लिखने की बात जो यु निकली,
हम भी शामिल हो गए
लिखा आज तक वही है
जो दिल हमसे कहे
कभी रोते हुए दिल का दर्द बयां किया
तो कभी खुद के ही जख्मो का मजाक उड़ाया
सब कुछ जुदा तो मुझसे ही था फिर भी जुदा से क्यों पाया
क्या वो में कह ना पाया जो मन में था
या फिर किसी दुसरे के ख्याल में खुद को उलझा पाया
लिखने की बात जो यु निकली,
हम भी शामिल हो गए
मेने कुछ नया नहीं बनाया
सिर्फ अन्दर दबे हुए एहसास को जताया
कई बार उसमे भी हार हुई
बात कहते कहते कलम रुक गयी कही
शायद कुछ बातो को कहने का सही वक़्त अभी नहीं आया
लिखने की बात जो यु निकली,
हम भी शामिल हो गए
अभी तो और भी उचाईया चुनी है
खुद से अभी ये वादा किया
राहों में तकलीफ ना हो तो सफ़र का मज़ा ही कहा
मंजिल भी कब तक दूर रहेगी
हमसे जुदाई का गम उसने भी तो है सहा
लिखने की बात जो यु निकली,
हम भी शामिल हो गए
लिखा आज तक वही है
जो दिल हमसे कहे||
- पलक जोशी
"मुझे मौत ने जो बुलाया था "
"मुझे मौत ने जो बुलाया था "
कितना ठंडा उसका साया था ,
जाना था कही और पर कैसे मना करूँ
क्या करता ???
मुझे मौत ने जो बुलाया था .....
कितना सुन्दर था वो झरना ,
पास जिसके मौत ने घर बसाया था ;
खिचता चला गया उस और ,
क्या करता ???
मुझे मौत ने जो बुलाया था ..........
कितना सुकून उन आँखों में थे ,
मेरा दिल किराये पर उनकी बाहों में था ,
में रुकना चाहता था -
माँ से आखरी बार गले मिल भी न सका ...
क्या करता ........???
मुझे मौत ने बुलाया जो था ;
कितना दर्द उन बातों था-
जब मेरे चाहनेवालों का धयान भगवान् से फरियादों में था ;
लाचारों में लाचार मै था ..,
क्या करता ???
मुझे मौत ने बुलाया जो था .....!!
कितना दुःख उन संस्कारों में था -
आखरी बार जो मेरे आभारों में था ,
किसी से ढंग से अलविदा कह भी न सका..
क्या करता???
मुझे मौत ने बुलाया जो था...
-Kartika Dubey
"वो ऐसे मोम की मूरत बन बेठे है..."
वो ऐसे मोम की मूरत बन बेठे हे जो सिर्फ हमारे लिए सक्त है....
बाकी तो उन्हें जला भी दे तोह उन्हें गम नही
पहले खुद ही आँखों से बातें किया करते थे....
और अब तोह लफ्जों की भी कोई करदा नही
हमे सामने पा कर वो मुह फेर लिया करते है...
दुसरे उन्हें देख कर भी अन्धेका कर दे तोह उन्हें गम नही
वो ऐसे मोम की मूरत बन बेठे है….
शायद हम सिर्फ खिलौना थे उनके लिए….
जिसे खेल के तोड़ दिया उन्होंने
पर हम तो आज भी उस टूटे हुए आईने की तरह है
जिसमे दीदार टूटने के बाद बढ़ता ही है घटा नही
आज भी उसकी सलामती की दुआ पहले आती है लबो पे
खुद जान भी चली जाये तोह गम नही
वो ऐसे मोम की मूरत बन बेठे है...
कहा था हमसे की उम्र तलक साथ देगे
अभी तो सफ़र शुरू हुआ था
अभी छोड़ गये हमे अकेला
इसी आसरे के साथ की लौट कर आयेगे वो कभी
जिंदगी में न जाने कब उनका दीदार होगा
क्या पता हम फिर मिल जाये शायद यही कही
न जाने किस्मत ने क्या लिख रखा है
हमने तो जीना ही उनसे सिखा था
उनके बिना ये जिंदगी
किसी मौत से कम नही
आज भी साँसे उनका नाम लेकर चलती है
कही इंतज़ार करते करते साँसे थम न जाये कही
वो ऐसे मोम की मूरत बन बेठे है जो सिर्फ हमारे लिए सकत है....
बाकी तो उन्हें जला भी दे तो उन्हें गम नही....
- पलक जोशी
बहुत शोर हैं यहाँ...
बहुत शोर हैं यहाँ...
तीखी चुभती आवाज़े हैं यहाँ
हर तरफ चीखे और
आक्रोश भरी नज़रें हैं यहाँ |
गुस्साएं चेहरे...
भावनाओं पर लगे
हज़ार पहरे हैं यहाँ...
बंद होते दरवाज़े,
और सिकुड़ती दीवारे हैं यहाँ...
क्यूँ एक कोना नहीं,
ठंडी सी प्यारी छॉव नहीं,
क्या कोई आसरा बचा नहीं
दो पल चैन मिल सके कही...
काश होता कोई दूसरा जहां कही
बहुत शोर हैं यहाँ, हर गली हर कही...
- मनाली किरकिरे
A New Day
A new day starts, a new beginning begins,
A new day to start new promises, break old promises,
A fresh new day, crisp, bright,
Burning, soothing, hurting, cooling.
Happy, you survived another year; you have one more day to celebrate,
Sad, when you realize this is no reason to celebrate....
Regrets perhaps, of not having completed some petty resolutions,
You made on a day that wasn't the New Year's.
Happy, because you completed some even pettier resolutions,
That were made on the 1st of January...
Petty, meaningless wishes, as important as a moth to the universe.
Then realism hits in the face,
Like the punch of a drunken boxer.
It’s not a day to think what I may have done yesterday,
Or a day to think of what I must do tomorrow,
Or even sort the futile, puerile garbage of thoughts pouring forth from my head,
It’s just another day, I must go through,
Live through,
Celebrate through?
Because, Perhaps today I can make something of today.
And specially today, because today is not just another day....
-Nandita Banerji
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