Saturday, September 11, 2010



By Jennifer Tahiliani.

Sunday, August 1, 2010

Glad to be Dead...


Another battle lost
haunted by defeated ghost
when i thought there could not be anything worse,
i stand aloof looking at my own corpse
its colorless, no green, no blue, no red
I feel peaceful, glad to be dead

Tried gathering reasons to fight for
all i got was a locked door
mocked at the irony
for it was me who broke the key
so I lay down,
no black, no white, no brown
wiping off the tears i shed
i feel peaceful, glad to be dead

No regrets of a failed daughter
no pains of a fated adorer
sufferings subsides along in the grave
girl faced it all, wont you call her brave?
its empty, no hate, no love, no comrade
i feel peaceful, glad to be dead!

-Anonymous.


Artist: Aishwarya Kanchan.

Thursday, July 29, 2010

प्रतिबिंब


एक चाह, एक कसक, एक उल्लास और एक अनकहा दर्द था उनमे, एक तड़प थी खुद को व्यक्त करने की और दुख था खुद की आवाज़ लो गों तक ना पहुचा पाने का. मैने खुद को भी कई बार ऐसा पाया है, शायद इसलिए उस अनसुने एहसास को मैं पूरी तरह महसूस कर पा रहा था. और खुद के उस विशाल प्रतिबिंब को देखकर खुश भी था मैं. एक पल तो ऐसा लगा मानो उन हज़ारो में में एक मैं ही था जो एक अधभूत खुशी को पा रहा था जिसका कारण बाद आत्मिक साधरीकरण था. हर बार जब उसका और मेरा मिलन होता तो एक अनोखे एहसास के तले हम खुद के दुखों को या कह लीजिए हम में उठती संवेदनाओं को बाँट लेते थे. ऐसा अधभूत मिलन था वो. शांति देह एक पल के लिए भी ऐसा ना लगा की मैंन अपनो से दूर हूँ, उस हर उठती लहर में मैने खुद को खुद के पास पाया, बहुत पास.

उस विशालकाय समुद्र से खुद की तुलना बेवकूफी लगी थी मुझे, पर इस मनुष्य जीवन में शांति, सुख और सुकून पाने का वो प्रयास कहीं भी ग़लत ना था. मेरे म्न में हर पल ख़याल अठखेलिया खा रहे थे तो वहाँ ऊँची उठती लहरें उस समुद्र की बैचेनी बया कर रही थी. मेरा हर ख़याल कुछ समय बाद एक तर्क पर आकर ख़त्म हो रहा था और मेरे सामने उस समुद्र की ताकतवर लहरें मेरे कदमों में आकर रुक सी जा रही थी.

न जाने क्यूँ उस दिन उस एहसास तले मुझे सारे सवालों के जवाब मिल गये. मेरे म्न की हर उलझन समुद्र की हर एक उठती लहर के साथ सुलझ गयी.
à अपना स्वार्थ साध चुका था, अपना मतलब निकाल चुका था, औरवहाँ से चला गया.

पर मैं अपने पीछे छोड़ गया था उस अशांत, परेशन, उत्तेजित व असहाय विहंगम समुद्र को जिसमें थी एक च ाह, एक कसक, एक उल्लास और एक अनकहा दर्द.
- अभिराज

Wednesday, July 28, 2010

आखरी पुकार




वो अकेला ही चला आया था,
बड़े से इस नगर में,
भीड़ भरे इस शहर में.
छोड़ अपने गाव को,
सौंधी सी माटी को.
छोड़ पीपल की छाव को,
चुहले की उस रोटी को.
लेकर अरमानों की पोटली,
लपेटे सपनों की चादर.
गया वो अनसुनी कर,
बूड़े पिता की आखरी पुकार.

सोचा था कुछ काम करेगा,
बच्चों को पढ़ाएगा.
एक छोटा संसार है उसका,
जिसे वह सजाएगा.
गाव में बहुत सुना, शहर के बारे में
बड़े दिलवाले, बड़े लोगों के बारे में.
यहाँ चकाचौंध है, चमक है,
बड़े घरवाले, बड़े साहब है.

काम
की तलाश में भटकते
बीत गये जाने कितने दिन
काम मिला नही मिली फटकार
मा का दुलार छोड़ आए था
यहाँ मिली दुतकार

धूप में जलते-जलते
बीत गये जाने कितने दिन
सिर पर छत ना मिली कहीं
छाव नसीब में ना थी कहीं...
शाहर अब भी रोशन है,
जगमगा रहा है.
कामयाबी और पैसे के पीछे,

सारा शाहर भाग रहा है.


अंधेरा था उसके सामने
अकेला बैठा था वह, गली के एक कोने में.
पेट में एक दाना था नहीं,
दो बूँद पानी को तरसता रहा
था हर कहीं.
सूनेपन से घिरा, तलाश रहा था
अपने बिखरे समान में...
वो सपने, वो खुशियाँ, मा का आँचल
सुबक्ता
रहा अकेले में पड़े हुए,
गूँज रही कानों में
बूड़े पिता की "आखरी पुकार".
- मनाली किरकिरे




Tuesday, July 27, 2010

WELCOME



A writer not only writes, he creates..
creates a new world out of his imagination.
A written verse is nothin but a figment of
writer's imaginaton. A writer can measure the
depth of the deep sea, he can touch the
horizon, he can fly with the chirping birds in the sky,
he can count the countless stars high
in the sky, he can play with the clouds
and touch the air. All he needs to do is to row his boat
of imagination in his desired direction....

Is your family tired of hearing,"Could you read
this story and give me some feedback?"
Have your freinds stoped answering emails from you
requesting impartial commentaries on your poems or plays?
Do classmates shy away from discussing writing when you in
earshot for the fear that you will beg them for their
opinions on your most recent article?
If so,you are at the right place.
EMRC brings you a writing group which will help you proofread
,edit contruct and enrich your various creative musings.



the smell of the first rains,
The Scribblers of EMRC will touch your heart,
Like the sight of spring flowers,
We will touch your soul.
A simple pen and paper will not seem mundane any more...

Laughing babies, raindrops on roses,
Will provide new food for soul.
Watch this space with interested gaze,
To see new dreams come true.

Unbound talent, Naive writing,
Our hindrances are very few,
Behold our writings, poems and musings,
We will come entrance you.

we welcome each and everyone to be the part of the Scribblers,
n Scribble their way through happiness :